प्रेरणा के स्रोत परमवीर

प्रेरणा के असली स्रोत प्रमवीरो की गाथा भी है।

 

मैं समझता हूं कि जीवन को बदलने के लिए जिद और जज्बा जिसे आमतौर पर हम हिम्मत कहते है, ये सबसे कारगर उपाय होस्कता है। आपने बहुत से लोगों से सुना होगा जब वे किसी के शोक समारोह में शामिल होते हैं तो अक्सर ये कहते है। की हिम्मत से काम लीजिए खुद को संभालिए

 

आज जब मैं अपने नए ब्लॉग लिखने पर विचार कर रहा था तो इस विषय पर ध्यान गया लेकिन फिर खयाल आया की ये बाते क्यों न मै उदाहरण के साथ लिखूं जैसा की मेरा स्वभाव है। मुझे उदाहरण चाहिए होता है। तब भी जब मैं किसी को समझाता हूं और तब भी जब मुझे कुछ समझना होता है।

 

नोट – आपने सुना होगा कुछ लोग कहते है की एक अपवाद भी होस्कता है, ये नजरिए की बात है क्योंकि मेरी नजर में एक ही उदाहरण होता है बाकी सब अपवाद

कुछ लोग ये भी कहते है की अकेला चना भाड़ नही फोड़ सकता ( ये मैने जेल में सुना था ) लेकिन ये वही लोग कहस्कते है जो दशरथ मांझी को नही जानते जिन्होंने अकेले कई वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद एक पहाड़ को काट कर गांव के लिए रास्ता बना दिया था।

 

अब आगे

मैं अपने इस ब्लॉग के जरिए एक कोशिश करूंगा की आप सभी पाठको को अपने देश के कुछ प्रमवीरों की कुर्बानियों से कुछ इस्तरह से अवगत करवा सकू की आप भी उनके जैसी विचारधारा अपने जीवन मे ला सके और एक सफल व्यक्ति बन सके

नोट – इसका मतलब ये नहीं की मैं किसी भी तरह से बढ़ा चढ़ा के लिखने वाला हु जी नही उनके विषय में मैने जितना पढ़ा है या अपने पिता जी जो की एक रिटायर्ड फौजी है उनसे सुना है सिर्फ उसी को लिखने वाला हु।

आगे,

 

देखिए जीवन में दुख और निराशा सभी के जीवन मे होती है, जीवन का सत्य यही है बिना दुख के सुख की कल्पना नही की जा सकती अगर आप सुख न मिलने से विचलित होकर ऐसी सोच अपना चुके है की मेरा कुछ नही होस्कता या मैं कभी सफल बन ही नहीं सकता तो ये केवल आपके मन मे जन्मी हताशा मात्र है और कुछ नही

 

इसका एक छोटा सा उदाहरण देना चाहूंगा

अब जैसे ज्यादातर लोगों के हाथ या पैर टूट जाता है तो वे क्या करते है, वे अपनी उस चोट को अपने हर कार्य में बाधा मान लेते है और सोचते हैं कि जबतक ये ठीक नही होगा मैं कैसे कुछ भी करूंगा परंतु उनका ध्यान इस विषय पर नही जाता की वे अपनी दैनिक क्रियाओं को जैसे तैसे ही सही लेकिन करते अवश्य है।

और वही अपने बाकी के कार्यों के लिए अपनी टूटी हड्डी का बहाना बना दिया करते है।

नोट – ध्यान से पढ़े ताकी आप भी अपनी कामयाबी के शिखर पर पहुंच सके।

आज मै ऐसे ही एक परमवीर का उदाहरण देना चाहूंगा आप सबको जिन्होंने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए अपने देश की शान के लिए। इस ब्लॉग के जरिए मुझे उन्हें अपनी तरफ से एक छोटी सी भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करने का सावभाग्य प्राप्त होस्का है इसके लिए ईश्वर का धन्यवाद अव्स्य करना चाहूंगा।

बचपन से ही मेरे पिता जी मुझे हमारे देश के प्रमवीरो की कहानियां सुनाया करते थे, जिनसे मुझे बहुत आत्म विश्वास मिलता था,

आगे

उन महान परमवीर का नाम जिन्हे हमारे आजाद भारत के पहले परमवीर चक्र विजेता के रूप मे जाना जाता है, जिनका नाम

श्री सोमनाथ शर्मा था,

मेजर साहब का जन्म 31 जनवरी 1923 को पंजाब प्रांत के कांगड़ा छेत्र के छोटे से इलाके दंध मे हु़वा था।

और देहांत 3 नवंबर 1947 मे मात्र 24 वर्ष की आयु मे आजाद भारत के बड़गाम जिले में भारत पाक युद्ध के दौरान हुवा था।

श्री सोमनाथ शर्मा 19 साल की आयु मे ही फौज की 4 बटालियन कुमाऊ रेजीमेंट में भर्ती होगये थे।

तब भारत पर ब्रिटिश शासन हुवा करता था, फौज के अपने पूरे प्रशिक्षण के बाद इन्हें 19 हैदराबाद रेजीमेंट की आठवीं बटालियन में नियुक्ती मिली

तब विश्वयुद्ध दृतिया चल रहा था, ब्रिटिश शासन के द्वारा बर्मा (देश) मे एक अभियान चलाया गया जिसमे श्री सोमनाथ शर्मा भी भाग ले रहे थे अभियान का नाम अराकन था।

इस पूरे अभियान के दौरान उन्होंने फौज के प्रति जिस ईमानदारी और वीरता का प्रदर्शन किया उसके फल स्वरूप उन्हे मेंशंड इन डिस्पैच में स्थान दिया गया ( उस समय का सेना मेडल था )

श्री सोमनाथ शर्मा जी के वीरता का संपूर्ण व्याख्यान देना मेरे लिए असम्भव सा है।

परंतु मुख्य तौर पर बर्मा की लड़ाई और भारत पाक युद्ध 1947 की चर्चा अवश्य करना चाहूंगा

भारत पाक युद्ध 1947 के दौरान पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला बोला था और हजारों घुसपैठियों ने कश्मीर के बड़े हिस्से में जम कर मार काट ,लूट, औरतों का ब्लातकार जैसे घटनाओं को अंजाम दिया था।

इस घोर संकट को देखते हुवे वहा के राजा ने भारत से मदद मांगी और कश्मीर का विलय भारत मे किया

विलय के तुरंत बाद कश्मीर का मोर्चा भारतीय फौज ने संभाला लेकिन वक्त बेहद कठिन था क्यों की हमारे जवानों के पास वहा की ठंड से बचने के लिए आवश्यक गर्म कपड़े भी उपलब्ध नहीं थे। और रशद की भी कमी थी

अब आगे,

श्री सोमनाथ शर्मा जी को युद्ध से पूर्व ही हॉकी मैदान पर गंभीर चोट लगने के कारण हाथ पर प्लास्टर लग चुका था फिर भी इस युद्ध में भाग लेने के लिए अपने बड़े अधिकारियों से उन्होंने सिफारिश की

उनके कुछ सिफारिशों के बाद उन्हे इसकी इजाजत मिल भी गई

 

27 अक्टूबर 1947 को, 22 अक्टूबर को कश्मीर घाटी में आक्रमण के जवाब में भारतीय फौज के एक बैच को तैनात किया गया था, मेजर सोमनाथ शर्मा को कुमाऊ रेजीमेंट की 4 बटालियन की डी कंपनी की कमान सौंपी गई  और वे बिना वक्त गवाए 31 अक्टूबर को अपनी डी कंपनी के साथ श्रीनगर पहुंच गए थे।

अपने टूटे हुवे हाथ को अनदेखा कर उन्होंने अपने कार्य और देश के प्रति जिम्मेदारी पर ध्यान केंद्रित किया

मेजर साहब की इस वीरता को देख सभी सैनिक बेहद प्रभावित थे

श्रीनगर जाने वाले घुसपैठियों की जॉच करने के लिए कुल तीन कंपनिया तैनात की गई थी

लेकिन शत्रु की निष्क्रियता को देखते हुवे लगभग दो तिहाई टुकड़ियां दोपहर तक वापिस श्रीनगर बुलवा ली गई थी,

मेजर साहब और उनकी डी कंपनी को 3 बजे तक तैनात रहने का आदेश दिया गया , बड़गाम इलाके की गस्त के दौरान पाक के घुसपैठियों ने जब दो तरफा हमला किया तो उनकी मनसा पर पानी फेरते हुवे हमारे प्रेमवीर श्री सोमनाथ शर्मा शहीद होग्य परंतु उन्हों ने अपनी वीरता से खुद को हमेशा के लिए अमर कर दिखाया

भारत सरकार ने युद्ध में अदम्य साहस को प्रर्दशित करने वाले अपने ऐसे बहादुर सिपाहियो को सम्मानित करने के लिए एक विशेष पुरस्कार की बेवसथा इस युद्ध के ठीक पहले की थी जिसकी रचनाकार सावभागय वस मेजर सोमनाथ शर्मा के भाई की पत्नी सावित्री बाई खनोलकर स्वयं थी।

 

इस तरह मेजर श्री सोमनाथ शर्मा आजाद भारत के पहले परमवीर बने

अंत मे में कहना चाहूंगा कि

 

मुस्किल आती है कठिनाई उत्पन होना स्वभाविक और अवस्यक दोनो है अगर जीवन में कठिनाई से सामना नही करेंगे तो गिरेंगे कैसे और गिरेंगे नही तो उठेंगे कैसे

याद रखिए जो गिरने का हौसला नही रख सकता उसे वो कभी ऊंचा नही उठ सकता तो अगर ऊंचा उठना चाहते है तो पहले गिरने का साहस रखे

लड़ाई जीतने की इच्छा है तो मार खाने और अपमानित होने मे भ्य कैसा

अपनी आखिरी सास और आखिरी साधन तक हार मत मानो हड़िया टूट जाए शरीर का आधे से अधिक लहू बह जाए

नुकसान चाहे जितना होजाये रुकना मत प्रयास मत छोड़िए यकीन मानिए अगर आप भी बिना आराम के चलते रहने का संकल्प लेते है तो सफलता मिलेगी ही मिलेगी

रही बात ऐसी स्थिति की जिसमे अपने पराए अब साथ छोड़ दें तो आपको बता दूं लोग आपको सिर्फ तभी छोड़ेंगे जब आप उनके किसी काम के नही होंगे

दुनिया स्वार्थी है

 

उदाहरण देखिए

अंधे को अगर दिखाई देने लगता है तो वो सबसे पहले उसी लाठी को फेक्ता है जिसके सहारे वे चलता था।

खुद की पहचान बनाए  और अपनी सारी ताकत से अपने बुरे वक्त को टक्कर दे एक दिन मे नही परंतु एक दिन आपकी जीत अवश्य होगी

मानो तो हार और जिद करो तो जीत

आपको क्या चाहिए हार या जीत?

 

खुद तय कर

 

धन्यवाद 🙏🇮🇳🙏🇮🇳🙏🇮🇳🙏🇮🇳🙏🇮🇳जय हिंद

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