प्रेरणा के स्रोत नायक जदू नाथ सिंह 🇮🇳🙏🇮🇳🙏🇮🇳🙏🇮🇳🙏🇮🇳🙏

प्रेरणा

प्रेरणा की बात किजाए तो मुझे लगता है की असल मे प्रेरणा शब्द का बहादुरी के साथ बहुत गहरा रिश्ता सा है,

इसे आप कुछ ऐसे समझिए की ज्यादातर जो लोग हमे प्रेरित करते है उनकी बातो मे एक जोश होता है वो कोशिश करते हैं की की हताश इंसान के अंदर दुबारा से एक नई ऊर्जा का संचार कर सके
इसके लिए वे आवश्यक प्रयास भी करते है तरह तरह के

उन्ही मे से एक यह भी है, ये मेरा पसंदीदा इसलिए है की इनके जरिए मै अपने देश के प्रति देश प्रेम भी जगाने की भरपूर कोशिश करता हूं तथा हर व्यक्ति को इन परम वीरों के देश के प्रति समर्पण और त्याग की जो भावना थी उससे कुछ इस्त्रह अवगत करवाता हूं की पाठको के अंदर दुबारा से एक नई ऊर्जा का संचार हो और वे खुद को किसी भी हालात से जूझने के लिए तैयार कर सके और उनके जीवन को एक सिख मिले,

अब सोचने वाली बात ये है की सिख क्या मिलेगी या कैसे क्योंकि आप तो ये सब या इससे मिलते जुलते किस्से पहले भी सुनते आए हैं।

देखिए ऐसा है की जब हम थोड़ा सा ध्यान देते है विशेष कर ब्लिदानियो की कहानियों पे

तो हमे ये साफ नजर आता है की वे सफल नहीं होसके अपने जीवित रहते हुए क्योंकि

उन्हे मरनोपरांत ये सम्मान मिल रहा है न, ऐसा नहीं है की वे जीवित थे तो बहादुर नही थे, परंतु खुद को साबित करने के लिए उन्होंने अपने जीवन का बलिदान दिया, तभी तो आज हम उन्हे याद करते है।

उनकी वीर गाथा सुनते या सुनाते है, उनके ऊपर लेख लिखते है।

इस बात से मेरा तात्पर्य केवल इतना है की ये आवस्यक नही होता, बल्की ये बात मायने ही नही रखती हैं की जो प्रयास हम कर रहे है, उसका अच्छा परिणाम हमे मिल ही जाए या मिलना ही चाहिए, जी नही इसके बजाए हमारा ध्यान केवल इस बात पर होना आवश्यक होता है की हम कहा गलती कर रहे है, या क्या हमारा प्रयास सही दिशा में है, लक्ष्य निर्धारित भी है या हम बस कूद रहे हैं।

जैसे – मेरा अनुभव है, मैने देखा है की, युवा पीढ़ी के साथ आज कल एक बात बेहद आमतौर पर देखी जाने लगी है की

किसी से मुलाकात हुई पैसे कमाने का कोई तरीका पता चला, थोड़ा प्रयास उसकी बातो पर भी कर लिए फिर कोई आया बोला
अरे मैं तो ये करता हूं, उसके पीछे चल दिए कोई भी बेहद आसानी से गुमराह कर दे रहा है।

जो आया वही अपने स्कूटर पर बिठा लेग्या,और आप चल दिए उसके पीछे, ये होता है दिशा हीन प्रयास।

अच्छा खासा वक्त इसमें गवाने के बाद फिर इस बात पर रोना की हमारी किस्मत साथ नही दे रही हैं हम बार बार असफल हो रहे है।

देखिए ऐसा है, किसी को भी बचपन से ही मालूम नही होता है की उसे क्या करना है या क्या करना चाहिए, परंतु ये हमारी जिम्मेदारी है की हम खुद को समझे की हम क्या करसकते है और क्या नही

और हम ये तभी समझ सकते है जब हम खुद को वक्त दे खुद से बाते करे
किसी भईया के पीछे भागना या अपने पिता की कमाई का दुरुपयोग निरंतर करते रहने से सफलता नही मिलती

तुरंत हम दूसरो की बराबरी करने लग जाते है, अहंकार में आजाते हैं
हम ये कैसे भुल जाते है की हम अभी तक अपनी खुद की पहचान तक तो बना नही सके तो दूसरो को उनकी अवकात कैसे याद दिला रहे है

कभी न भूले की विद्यार्थी जीवन सबसे गरीब जीवन होता है क्योंकि जरूरत की हर वस्तु हमे मांगनी होती हैं

कुछ लोग सोचेंगे ऐसा नही है मेरे पास हमेशा पैसे रहते है

ऐसा है मैं मानता हु परंतु वे आपके खुद के कमाए गए पैसे नही है आपको जरूरत थी
तो वो आपको किसी प्रियजन के द्वारा दिए गए हैं, तो अहंकार न करे

मैं हमेशा अकेले रहने की सलाह देते रहता हूं, क्योंकि मुझे ये एहसास हो चुका है की जब हम अकेले रहते है तो, हम अपने सबसे अच्छे मित्र,हमारे परम हितैसी के साथ होते है और वो हम खुद होते है।

अब आगे – आज मैं बड़े गर्व से अपने देश के दूसरे परम वीर चक्र विजेता नायक श्री जादूनाथ सिंह जी के बारेमे कुछ बताना चाहूंगा जिससे आपको मेरी कही बातो को समझना और भी आसान होगा।

मैं नायक साहब को उदाहरण के तौर पर इस लिए भी बता रहा हु की अपने जीवन की जो अंतिम लड़ाई उन्होंने लड़ी थी वे काफी हद तक हमारे असल जिंदगी में आने वाली परेशानियों से मिलती जुलती है।

कैसे?

आपने देखा होगा या महसूस किया होगा कभी कभी हमारे जीवन में मुसिब्ते बिलकुल लहर बन कर आती है, एक के बाद एक आती ही जाती है, और हम लोग उन्ही लहरों के थपेड़ों से टूट कर हार मान लेते है या कुछ वक्त के लिए उम्मीद खो देते है, थके हुए से मेहसूस करने लगते है, हमे ऐसा लगता है की बस अब और नही होगा हमसे ये हमारे बस की बात नही कोई सहारा खोजने लगते है या रोना शुरू करते है, कुछ लोग तो सीधे आत्म हत्या भी कर लेते है नही तो कम से कम आत्म हत्या का प्रयास तो अवश्य करते है।

देखिए मैं इस्तराह के किसी भी व्यक्ति के ऊपर कोई टीका टिप्पडी बिलकुल नहीं करूंगा क्योंकि आपकी समस्या को आपसे बेहतर कोई नहीं समझ सकता

लेकिन ये जरूर कहना चाहूंगा कि ऐसी कोई समस्या नही होती जिसका कोई हल न हो आप प्रयास तो करे चिंतन करे तभी तो हल भी समझ आएगा क्योंकि चिंता करेंगे तो आपकी चतुराई काम नही करेगी और चिंतन करेंगे तो समाधान मिले न मिले प्रयास करते रहने का जरिया तो हासिल अवश्य ही होगा।

अब आगे –

कल्पना कीजिए की गुस्साई भीड़ आपको मौत के घाट उतारने के लिए आमादा है, ये उदाहरण इसलिए दे रहा हूं की
मेरी समझ से सबसे बड़ी मुसीबत मे इंसान तब होता है जब हर तरफ से उसे लोग घेर कर मौत के घाट उतारने के लिए आमादा होजाते हैं या बात जीवन रक्षा की होती हैं,भीड़ हिंसा के किस्से आपने भी सुने ही होंगे कभी बच्चा चोरी के झूठे इल्जाम मे तो कभी कुछ और

नायक श्री जादूनाथ सिंह जी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुवा था,
कृपया गलत मतलब न निकाले सिंह साहब एक फौजी थे उनके ऊपर ऐसा कोई इल्जाम नही था और कोई लगा भी नही सकता था, क्योंकि सिंह साहब चरित्र के बेहद साफ थे, उन्होंने आजीवन शादी न कर के ब्रह्मचर्य को अपनाया था वे बजरंगबली के सुध भक्त भी थे और कुस्ती के सौखीन भी बचपन से ही मनोरंजन के लिए कुस्ती लड़ा करते बाद में ये उन्हे बेहद प्रिय होगया था।

अपने गांव के सबसे बेहतरीन पहलवान बने और प्रेम से गांव के लोगो ने उन्हें एक उप नाम भी दिया (हनुमान भक्त बालब्रह्मचारी)
इनके अलावा इनके कुल सात और भाई बहन थे जिनमे सिंह तीसरे स्थान पर थे और कुल सात भाईयो मे केवल एक बहन थी,

सिंह के पिता जी का नाम – श्री बीरबल सिंह राठौड़ था
माता का नाम – श्रीमती जमुना कुंवर था।

इनका जन्म – 21 नवंबर 1916 को ग्राम खजुरी, साहजहापुर , ब्रिटिश भारत में हुवा था।

सिंह का परिवार बड़ा था और आर्थिक स्थिति खराब जिसके कारण वे ज्यादातर समय अपने परिवार के सहयोग मे खेतो मे ही बिताया करते थे और पढ़ाई भी छोड़नी पड़ी थी।

सिंह साहब केवल 4 पास थे।

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 21 नवंबर 1941 को फतेहगढ़ रेजीमेंटल सेंटर में ब्रिटिश भारतीय सेना की 7 वी राजपूत रेजीमेंट में भर्ती हुवे,
इनकी कहानी पहली बार मैंने जेल मे पढ़ी थी और तभी से ये मेरे आदर्श है, ध्यान दिया जाए तो सिंह साहब अपने जन्म तिथि पर ही फौज में भर्ती भी हुवे थे।

अब आगे

सिंह साहब अपना प्रशिक्षण पूरा करने के बाद रेजीमेंट की पहली बटालियन में तैनात किए गए।

1942 के अंत में बर्मा अभियान के दौरान उनकी बटालियन को आरकन प्रांत में तैनात किया गया था, वहा भी सिंह ने बेहद बहादुरी से जापानियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी।

बात बुरे वक्त से लडने की हो या किसी बड़ी फौज से सिंह साहब कभी पीछे नहीं हटते थे। नतीजों की प्रवाह किए बिना लगातार जूझते रहना, बार बार जख्मी होना फिर भी आगे बढ़ते रहना, जितनी बार गिरना उतनी बार उठ खड़े होना ये सब गुड तो जैसे उनके अंदर बचपन से ही था।

मेरा मानना है की ये होना आवश्यक भी है और ये गुड सबके पास होना चाहिए।

हम क्यों रुकेंगे, हम थकान की वजह से आराम की तलाश क्यों करेंगे , चोट लगने पर इलाज क्यों खोजेंगे, जीवन मे सफल व्यक्ति बनने के लिए किसी से दया की उम्मीद क्यों करेंगे,

याद रखिए अगर आप जीवन की भीख मांगते है किसी से तो ये उसकी इच्छा है की वो देगा या नही

और आप खुद सोचिए कोई आपको जीवन की भीख देना चाहता अगर तो चोट क्यों पहुंचाता भला
इसलिए कभी हाथ न फैलाए बात जिंदगी की हो या पैसों की
बात कमजोर से हो या ताकतवर से कोई फर्क नही पड़ता

अगर भीख मांगने से जीवन आपका सफल हो भी जाता है तो जरा सोचिए क्या अंतर है, सड़क पर बैठे भिखारी मे और आप मे

अब आगे

अराकन की लड़ाई के बाद सिंह साहब जब जीत कर वतन वापिस आए तो उन्हें नाईक (कार्पोरल) के पद पर नियुक्ति प्राप्त हुई (पद बढ़ाया गया) भारत पाक बटवारे के बाद 7 वी राजपूत रेजीमेंट को भारतीय सेना को सौपा गया। सिंह साहब नव गठित भारतीय रेजीमेंट के साथ बने रहे। तथा इसकी पहली बटालियन में सेवा जारी रखी

सिंह 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी हिस्सा लिए

इनकी कहानी जानने के बाद ये एहसास तो किसी को भी होजाएगा की असल मे जुझारू व्यक्ति कैसा होता है या उसे कैसा होना चाहिए

यह भी की लगातार कोशिश क्यों करनी चाहिए हार मान कर बैठने के बजाए

अब आगे

ये बात है अक्टूबर 1947 की जब जम्मू और कश्मीर में पाकिस्तानी हमलावरों के हमले के बाद , भारतीय मंत्रिमंडल की रक्षा समिति ने सेना मुख्यालय को सैन्य प्रतिक्रिया देने का निर्देश दिया।
निर्देशानुसार हमलावरों को खदेड़ने के लिए सेना ने कई अभियानों की योजना बनाई। ऐसे ही एक ऑपरेशन में, 50 वीं पैरा ब्रिगेड , जिसमें राजपूत रेजिमेंट भी शामिल थी, को नवंबर के मध्य में नौशहरा को सुरक्षित करने और झंगर (एक जगह)में एक बेस स्थापित करने का आदेश दिया गया था।

परंतु खराब मौसम ने इस कार्रवाई को रोक दिया जानकारी के लिए बता दे की तब उतनी ठंड में जाने लायक कोई बेवस्था नही थी यहां तक कि पर्याप्त गर्म कपड़े भी उपलब्ध नहीं थे, इसलिए 24 दिसंबर को, नौशहरा सेक्टर में रणनीतिक रूप से लाभप्रद स्थिति झांगर पर पाकिस्तानियों ने कब्जा कर लिया

जिससे उन्हें मीरपुर और पुंछ (नगर) पुंछ के बीच संचार लाइनों पर नियंत्रण मिल गया और एक शुरुआती बिंदु प्रदान किया गया, जहां से हमले किए जा सकते हैं। नौशहरा पर बनाया जा सकता है। अगले महीने, भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को आगे बढ़ने से रोकने के लिए नौशहरा के उत्तर-पश्चिम में कई अभियान चलाए। 50 वीं पैरा ब्रिगेड के कमांडिंग ऑफिसर ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान ने अपेक्षित हमले का मुकाबला करने के लिए आवश्यक व्यवस्था की थी। दुश्मन के संभावित ठिकानों पर सैनिकों को छोटे-छोटे समूहों में तैनात किया गया था।

नौशहरा के उत्तर में स्थित तैन धार एक ऐसा दृष्टिकोण था जिसके लिए सिंह की बटालियन जिम्मेदार थी।

6 फरवरी 1948 की सुबह, 6:40 बजे पाकिस्तानी सेना ने ताइन धार रिज पर गश्त कर रही बटालियन के पिकेट पर गोलीबारी शुरू कर दी।

दोनों पक्षों के बीच गोलीबारी हुई। सुबह-सुबह कोहरे के कारण हमलावर पाकिस्तानियों को धरना स्थल तक पहुंचने में मदद मिली।

जल्द ही, तैन धार पर्वतमाला की चौकियों पर मौजूद लोगों ने बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिकों को अपनी ओर बढ़ते देखा। सिंह तैन धार में दूसरी पिकेट की अग्रिम चौकी पर तैनात नौ कर्मियों की कमान संभाल रहे थे।

पाकिस्तानी हमलावर लहर बन कर आरहे थे, हजारों की संख्या में अपनी स्वचालित हथियारों के साथ

सिंह और उनका दल पाकिस्तानी सेना द्वारा उनकी स्थिति पर कब्ज़ा करने के लगातार तीन प्रयासों को विफल करने में सक्षम थे। तीसरी लहर के अंत तक, चौकी पर मौजूद 27 लोगों में से 24 लोग मर गए या गंभीर रूप से घायल हो गए। सिंह ने इस पद पर एक सेक्शन कमांडर होने के नाते, “अनुकरणीय” नेतृत्व प्रदर्शित किया, और अपने लोगों को तब तक प्रेरित करते रहे जब तक कि उन्होंने दम नहीं तोड़ दिया। यह नौशहरा की लड़ाई के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण क्षण साबित हुआ।

6 फरवरी 1948 को तैनधार में नंबर 2 पिकेट पर, नंबर 27373 नायक जदुनाथ सिंह एक फॉरवर्ड सेक्शन पोस्ट की कमान संभाल रहे थे,

जिसने दुश्मन के हमले का पूरा खामियाजा भुगता। भारी बाधाओं के बावजूद नौ लोगों ने छोटी चौकी पर कब्जा कर लिया। दुश्मन ने इस पोस्ट पर कब्ज़ा करने के लिए लगातार लहरों में और बड़ी क्रूरता के साथ अपना हमला शुरू किया।

पहली लहर उग्र हमले में चौकी तक पहुंच गई। महान वीरता और नेतृत्व के अद्भुत गुणों का प्रदर्शन करते हुए नायक जदुनाथ सिंह ने अपने पास मौजूद छोटी सी सेना का ऐसा इस्तेमाल किया कि दुश्मन पूरी तरह से असमंजस में पड़ गया।

उनके चार लोग घायल हो गए लेकिन नायक जादुनाथ सिंह ने एक और हमले का सामना करने के लिए अपने अधीन पराजित सेना को फिर से संगठित करके अच्छे नेतृत्व के अपने गुणों को फिर से दिखाया।

उनकी शीतलता और साहस इस स्तर का था कि लोग एकजुट हो गए और दूसरे हमले के लिए तैयार थे जो पिछले हमले की तुलना में अधिक दृढ़ संकल्प और बड़ी संख्या में आया था। हालांकि निराशाजनक रूप से संख्या में कमी होने के बावजूद, नायक जदुनाथ सिंह के वीरतापूर्ण नेतृत्व में इस पद का विरोध किया गया।

सभी घायल हो गए, और नायक जदुनाथ सिंह, हालांकि दाहिनी बांह में घायल हो गए, उन्होंने व्यक्तिगत रूप से घायल ब्रेन गनर से ब्रेन गन ले ली। दुश्मन सीधे चौकी की दीवारों पर था लेकिन नायक जदुनाथ सिंह ने एक बार फिर कार्रवाई में उच्चतम स्तर की उत्कृष्ट क्षमता और वीरता दिखाई।

अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा की पूर्ण उपेक्षा करके तथा शीतलता और साहस का उदाहरण देकर, उन्होंने अपने लोगों को लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। उसकी आग इतनी विनाशकारी थी, कि आसन्न हार की तरह दिखने वाली चीज जीत में बदल गई और दुश्मन मृतकों और घायलों को जमीन पर छोड़ कर अराजकता में पीछे हट गया।

सर्वोच्च वीरता के इस कार्य और नेतृत्व और दृढ़ संकल्प के उत्कृष्ट उदाहरण के साथ, नायक जदुनाथ सिंह ने दूसरे हमले से पोस्ट को बचा लिया।

इस समय तक, चौकी के सभी लोग हताहत हो चुके थे। दुश्मन ने इस पोस्ट पर कब्ज़ा करने के लिए कम संख्या में और दृढ़ संकल्प के साथ अपना तीसरा और अंतिम हमला किया।

नायक जदुनाथ सिंह, जो अब घायल हो चुके थे, वस्तुतः अकेले ही तीसरी बार युद्ध करने के लिए तैयार हुए। बड़े साहस और दृढ़ संकल्प के साथ, वह संगर से बाहर आए और अंततः स्टेन गन के साथ, आगे बढ़ते दुश्मन पर सबसे शानदार अकेले हमला किया

जो पूरी तरह से आश्चर्यचकित होकर अव्यवस्था में भाग गया। हालाँकि, नायक जदुनाथ सिंह को अपने तीसरे और आखिरी हमले में वीरतापूर्वक मृत्यु प्राप्त हुई जब दो गोलियाँ उनके सिर और छाती में लगीं। इस प्रकार, बढ़ते दुश्मन पर अकेले ही हमला करते हुए, इस गैर-कमीशन अधिकारी ने वीरता और आत्म-बलिदान का सर्वोच्च कार्य किया और ऐसा करके अपने सेक्शन-नहीं, अपने पूरे पिकेट को सबसे गंभीर स्थिति में दुश्मन द्वारा पराजित होने से बचाया।

अंत मे मै यही कहना चाहूंगा कि

सिंह साहब की लगातार जूझते रहने का जो गुण था उसे आप भी अपने जीवन में लागू करने का प्रयास करे

ये एक दिन में नही होगा परंतु एक दिन जरूर होगा

क्या होगया अगर

आज आपको कोई नीचा दिखा कर चला गया, आज आप पर कोई हाथ उठा कर चला गया, क्या फर्क पड़ता है अगर आज आप हारे हैं, तो क्या फर्क पड़ता है अगर आज आपके पास पैसे नहीं है तो, क्या फर्क पड़ता है अगर आज आप लोगो के बीच एक मजाक बन कर रह गए हैं तो,क्या फर्क पड़ता है अगर आप खूबसूरत नही है तो,क्या फर्क पड़ता है अगर आज आप एक जीरो है सबकी नजर में तो,

याद रखिए हमारे गुण हमारे दोष के विषय मे हमसे बेहतर हमारे मां बाप भी नही जानते

हमे अपने गुण की पहचान करनी होगी और उसी गुण के पीछे सिर्फ उसे बेहतर से बेहतर और बेहतर बनाने के पीछे काम करना शुरू करना होगा ताकि जिस दिन हम सफलता के उच्च स्थान पर पहुंचे हम खुद प्रेरणा की मिसाल कायम करे
उदाहरण देना चाहूंगा – डॉली चाय वाला के जिन तरीको से वो कपड़े पहनते है या जो उनकी स्टाइल है काम करने की

आपको नही लगता की शुरू मे वे भी लोगो के बीच केवल हसी का पात्र बन के रह गए होंगे

लेकिन उन्होंने हार नही मानी लोगो की बात पर ध्यान नहीं दिया खुद को अपने काम मे सबसे बेहतर बनाने के जुनून मे लगे रहे

न जाने कितना संघर्स कर के आज वे सफल हुवे है।

खुद पर भरोसा करिए अपने फैसलों पर विश्वास करना सीखिए किसी के कहने पर नही आप तय करिए की जो फैसला आपने लिया है वो सही है या गलत

और तब आगे बढ़ाए एक मजबूती के साथ, कभी न रुकने के इरादे के साथ, कभी हार न मानने के संकल्प के साथ, मुड़ कर न देखने की इच्छा शक्ति के साथ, सारे दर्द सारे घाव सह कर चलते रहने के खुद से किए गए वादे के साथ, अपनी सारी ताकत और ज्ञान सब कुछ झोंक दीजिए

यकीन मानिए एक दिन आप बिना कुछ कहे सबका जवाब दे देंगे
लेकिन उसके लिए पहले अवस्यक है की हम अपने गुण की पहचान करे क्योंकि पहचान होगी तभी तो उसके पीछे हम मेहनत करेंगे और उसे निखारेंगे।

मैने जितने ब्लॉग लिखे है इन सबमें वो रास्ता साफ समझाने का प्रयास किया है जिससे हम सुनिश्चित कर सकते है की हमारे जीवन लक्ष्य क्या है या क्या होना चाहिए
हमारे लिए अच्छा रास्ता कौन सा होगा।

एक सिपारिश करना चाहूंगा अगर आप अंत तक इस ब्लॉग को पढ़े हैं और आपको ये अच्छा लगा है या आप इससे कुछ सिख सके हैं तो कृपा करके कॉमेंट में जय हिंद अवश्य लिखे ताकी
नायक साहब को श्रद्धांजलि अर्पित कर सके।

धन्यवाद 🙏🇮🇳🙏🇮🇳🙏🇮🇳🙏🇮🇳🙏🇮🇳 जय हिंद

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